कानपुर।हमारी पूजा(इबादत) से अल्लाह को कोई फायदा नहीं, अल्लाह को इबादत की जरूरत नहीं, इबादत तो अल्लाह की सारी सृष्टि करती है। अल्लाह ने हमारे साथ जो भलाई(एहसान) किया है, उसका धन्यवाद हम इबादत के रूप में करते हैं और इबादत करने वाले को अल्लाह ने पसंद किया है। ये बातें जामिया उम्मुल मोमिनीन खदीजतुत्ताहिरा लिलबनात में आयोजित जलसा तकमील बुख़ारी शरीफ़ में अंतिम शिक्षा (दर्स) देते हुए दारुल उलूम मर्कज ए इस्लामी इलाहाबाद के संस्थापक व संचालक मौलाना गयासुद्दीन उत्तराधिकारी हज़रत मसीहुल उम्मत जलालाबाद ने कहीं। मौलाना ने कहा कि अल्लाह की मर्जी के अनुसार पालन करना धर्म है और धर्म की शुरुआत इरादे से होती है। इमाम बुखारी की पहली हदीस ही नीयत पर है और कर्मों का आधार भी इरादों पर ही है। मौलाना ने कहा कि अल्लाह ने जो आदेश दिए हैं वे कुरआन के रूप में हैं और अल्लाह ने कुरआन की रक्षा का जिम्मेदारी स्वयं लिया। मौलाना ने कहा कि जिस तरह कुरआन से पहले तौरेत, ज़बूर और इंजील में बदलाव किया गया उसी तरह कुरआन को भी बदलने की बहुत कोशिशें की गईं लेकिन सब असफल साबित हुईं। हज़रत मौलाना ने कहा कि हदीस हुजूर स0अ0व0 के बोले गये शब्द हैं लेकिन बात अल्लाह की है, आप स0अ0व0 जो संदेश दिया जो शिक्षा दी वह अल्लाह का संदेश है। हदीस को पढ़ना दीन को बल(शक्ति) देना है। इस अवसर पर संबोधित करते हुए कार्यवाहक काजी ए शहर मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने कहा कि इस्लाम ने महिलाओं को जो सम्मान दिया है वह किसी भी अन्य धर्म ने नहीं दिया गया। महिलाओं से नस्लें तैयार होती हैं और वही नस्लें सभी कार्यक्षेत्रों में सेवा देती हैं। मौलाना ने कहा कि इस्लाम वह धर्म है जिससे अधिक विस्तार रखने वाला दुनिया में कोई धर्म नहीं। मौलाना ने जलसे में मौजूद महिलाओं से विशेष रूप से अपील की कि जाहिलियत के दौर की तरह अकारण ही बाहर न घूमें, पर्दे में रहकर दुनिया में आने के उद्देश्य का पालन करें अगर ऐसा हो गया तो कई समस्याओं का हल जो जायेगा। इसके साथ ही मौजूद लोगों से कहा कि माता-पिता की सेवा करें, क्योंकि माता पिता की सेवा जिहाद से बढ़कर है। अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने हमें पूरा जीवन जीने के तरीका बताया है, उसी को पालन करने की आवश्यकता है। मौलाना ने आगे कहा कि पश्चिमी सभ्यता ने महिलाओं को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है, इसलिए महिलाओं को इस्लामी शिक्षाओं का पालन होना चाहिए। अल्लाह ने पुरुषों को दाढ़ी और महिलाओं को चोटी से सुन्दरता दी है यह नबी और उनकी बीवियों की सुन्नत है इसके विपरीत करने वाला मर्द या औरत स्वर्ग में नहीं जा पाएगा। मौलाना उसामा ने मौजूद सभी लोगों से कहा कि शिक्षा बिना तर्बियत के बेकार है इसलिए शिक्षा के साथ बच्चों की अगर बचपन से ही अच्छी तर्बियत होगी तो हमारे समाज में इसके सकारात्मक परिणाम आयेंगे। जामिया उम्मुल मोमिनीन खदीजतुताहिरह लिलबनात के संस्थापक व संचालक मौलाना अहमद हसन क़ासमी ने मदरसा की रिपोर्ट पेश की और संस्था की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मदरसे में 100 से अधिक छात्राओं को धार्मिक शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यवस्था है इस साल 7 छात्राओं ने आलिमा बनकर शिक्षा को पूर्ण किया । जलसे शुभारम्भ क़ारी मुजीबुल्लाह इरफानी की तिलावत से हुआ जबकि हाफिज अमीनुल हक़ अब्दुल्ला ने नात का भेंट पेश किया। मौलाना मुफ्ती सैय्यद मुहम्मद उस्मान क़ासमी ने संचालन के कार्याें को अंजाम दिया। मौलाना गयासुद्दीन साहब ’की दुआ पर ही जलसे का समापन हुआ। इस अवसर पर मुफ्ती मुहम्मद उस्मान कासमी, मुफ्ती इकबाल अहमद कासमी, मुफ्ती अब्दुर्रशीद क़ासमी, मौलाना खलील अहमद मज़ाहिरी, मौलाना कौसर जामई के अलावा अधिक संख्या में लोगों के साथ बड़ी संख्या में पर्दें के साथ महिलाओं ने भी भाग लिया। जामिया के संचालक मौलाना अहमद हसन ने आए हुए मेहमानों का धन्यवाद दिया।
