alok srivastav .varanasi पत्रकार जगेन्द्र की हत्या मामले में आरोपित मंत्री राम मूर्ति सिंह वर्मा और तत्कालीन शाहजहाँपुर कोतवाली प्रभारी श्रीप्रकाश राय खुलेआम घूम रहे हैं उनकी गिरफ़्तारी को लेकर जिस तरह से आंदोलन किए जा रहे हैं…सच में उपहास के पात्र हैं। इतना कुछ होने के बाद भी पत्रकारों में एकजुटता दूर तक नज़र नहीं आ रही है। सभी लोग संगठन और संस्थाओं में ही नहीं बल्कि गुटों में बटें हुए हैं। देश के किसी भी कोने से ऐसी कोई आवाज़ नहीं आई कि सरकार को छोड़िए खुद पत्रकारों के कानों तक सुनाई पड़ी हो। अभी भी वक़्त है…. सुधर जाओ! वरना “आज जगेन्द्र मरा है…..कल मेरा नंबर है और फिर किसी और का ऐसे ही एक दिन तुम्हारा… अभी भी समय है एक हो जाओगें तो किसी के नेतृत्व की ज़रूरत नहीं पड़ेगी….बस फिर तो जिधर हम चलेंगे कारवाँ निकल पड़ेगा…उधर तुम्हारी जय-जयकार होगी।
दोस्तों हम समाज के चौथे स्तम्भ के सजग प्रहरी कहे जाते हैं हमारे आप के बीच एकता की कमी साफ झलक रही है। वहीँ हमारे उत्तर प्रदेश की सरकार जिनके नुमाइंदों को हम आप अपनी लेखनी के बल पर हीरो बनाते हैं और चुनावी रणभूमि में जिताने में अहम् भूमिका अदा करते हैं वही नेता एक पत्रकार को जला कर मारने के आरोपी मंत्री को बचाने के लिये एड़ी चोटी एक कर दिए हैं। यहाँ तक की समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राम गोपाल यादव ने हत्यारोपी को बचाने के लिए यहाँ तक कह डाला कि ऍफ़आईआर दर्ज हो जाने से कोई मुजरिम नहीं हो जाता है वहीँ समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शिवपाल यादव ने कहा की जांच के बाद ही कोई कार्यवाही की जायेगी अब इनको ये कौन समझाये की मृत्यु पूर्व दिए गए ब्यान से महत्वपूर्ण कोई बयान नहीं होता किसी भी अपराधी को काल कोठरी में भेजने के लिए। जबकि इसी उत्तर प्रदेश की पुलिस ने एक मुकदमे में आरोपित किये गये पत्रकार जगेन्द्र को फरार, ठग और न जाने कौन कौन से आरोप लगाते हुए शाहजहाँपुर में पम्फलेट बटवाये गए और इनाम तक घोषित कर दिया गया। वही पुलिस मंत्री मामले में शांत बैठी है जबकि मंत्री व पुलिस कर्मियों के खिलाफ मरने वाले का मजिस्ट्रेट को दिया ब्यान मौजूद है।
दोस्तों ये सब इसलिए हो रहा है कि इन सबको पता है कि पत्रकार एक नहीं हैं और कई खेमे में बंटे हुए हैं। अब हम एक हकीकत का सामना कराने का प्रयास कर रहे हैं पूरे प्रदेश में ऐसे संगठन हैं जो अपने जिले के पत्रकारों का पैमाना कुछ मठाधीशों के बल पर तय करते हैं और उन्ही लोगों को पत्रकारों की श्रेणी में गिनते हैं जो उनकी हाँ में हाँ मिलाये। जिसने भी इनका विरोध किया उसको ये पत्रकार नहीं मानते हुए फर्जी करार देने लगते हैं। ऐसा ही एक संगठन वाराणसी का काशी पत्रकार संघ के नाम से चलता है जिसके पदाधिकारी नामचीन पत्रकार हैं जो करते तो पत्रकारों का प्रतिनिधित्व हैं लेकिन पत्रकारों के हित में लगभग 1.5 दशक से कोई कार्य नहीं किये। बस किया तो अपना भला किया। पत्रकार जगेन्द्र मामले में 15 दिनों बाद इनकी तन्द्रा भंग हुई है और ये 17 जून 2015 को विरोध मार्च निकाल रहे हैं और सभी पत्रकार संगठनों से अपील किये हैं कि विरोध मार्च में इनके बैनर में निकलने वाले विरोध मार्च में सम्मिलित हों क्या इनके पास अपने प्रतिनिधियों की कमी हो गयी है यदि नहीं तो अन्य संगठन को अपने बैनर द्वारा निकाले जाने वाले पैदल मार्च में क्यों सम्मिलित करना चाह रहे है यदि इनको मार्च निकालना ही है तो बैनर हटा दें जिससे वाराणसी के सभी पत्रकार इस विरोध मार्च में सम्मिलित हो सकें।
दोस्तों इस कटु सत्य को पढ़ने के बाद हो सकता है कि वाराणसी के कुछ पत्रकार मेरे विरोधी हो जायं और मेरे खिलाफ ही षणयंत्र रचने लगें जिसका मुझे कोई गम नहीं है। बल्कि मुझे ख़ुशी होगी कि मेरे एक छोटे से प्रयास से काशी के सभी पत्रकार तो एक हुए।

काशी के पत्रकार आलोक श्रीवासत्व ने पत्रकारों को कैसे आइना दिखाया पढ़िए इस रिपोर्ट को।
(लेखक वाराणसी में दैनिक काशी वार्ता के संवाददाता हैं)