abu obaida 9838033331 .snn सरकारी अस्पतालों में होने वाले इलाज और स्टाफ के व्यवहार पर आप को भरोसा हो न हो ‘शेरा ,टॉमी ,और शेरू जैसे कई हैं जो कानपुर के सरकारी अस्पतालों के गुणगान करते नहीं थकते उनका कहना है की यहाँ का स्टाफ तो बहुत ही अच्छा है कहीं भी बैठने उठने पर एतराज़ नहीं करता किसी भी वार्ड में जाने से नहीं रोकता.शेरू कहते हैं मै तो यहाँ बचपन से आरहा हूँ क्यूंकि पिता जी और मां भी यहाँ आते थे उन्हें भी यहाँ के स्टाफ ने कभी कुछ नहीं कहा हमें भी कोई कुछ नहीं कहता और तो और हमें तो यहाँ खाना और पानी भी खूब मिलता है .अस्पताल में आने वाले अक्सर अपना खाना हम से शेयर करते हैं जिस से हमें होटलों के घटिया खाने की तरफ नहीं देखना पड़ता.टॉमी ने कहा की आम तौर पर हम लोग मौसम के हिसाब से अपना ठिकाना बदलते हैं ,गर्मी के दिनों में हम उर्सला इमरजेंसी के कभी कभी चलने वाले कूलरों के पास ही सो जाते हैं कभी कभी बेड पर भी जगह मिल जाती है तो सुकून से नींद आती है मगर लाईट जाने पर हमें भी बाहर खुले में आना पड़ता है .हम भी वहीँ आ जाते हैं जहाँ और तीमारदार बैठे होते हैं ,जाड़े में तो मज़ा आजाता है आराम से सारा दिन और रात वार्ड के अंदर गुज़रती है मम्मी पापा और भाई भी सब साथ रहते हैं हाँ कुछ पडोसी आजाते हैं तो शोर के चलते कुछ लोग हमें चुप होने को मजबूर करते हैं डांट भी देते हैं मगर स्टाफ कभी कुछ नहीं कहता.डाक्टरों से लेकर नर्सिंग स्टाफ की तारीफें सुनते सुनते शेरू बीच में बोले ‘’एक बात की तकलीफ है यहाँ बदबू बहुत रहती है ‘’’ शायद वो कहना चाह रहा था की कभी कभी लगने वाले पोछे को दिन रात लगना चाहिए जैसे निजी अस्पतालों में होता है.इतनी देर में शेरू के छोटे भाई आये और उनके कान में कुछ कहा और दोनों अपनी मां के साथ कहीं चले गए.सारी बातें सुनने के बाद मै ने सोचा चलो स्टाफ को बधाई दे दूं स्टाफ की तारीफ़ करने वालों से मिलवा दूं , इमरजेंसी में काफी देर घूमा स्टाफ को ढूँढता रहा मगर कोई दिखा नहीं ,मै ने तीमारदारों से पूछा जवाब मिला सुबह जब डाक्टर साहब आते हैं तो दीखते हैं फिर कहाँ चले जाते हैं पता नहीं हमें तो अपना मरीज़ देखना होता है.इतना लिखने के बाद आप से इतना ही कहूं गा
;;एक बार तो आइये उर्सला इमरजेंसी में ;;;