कोलकाता-राजेश मिश्र- असहिष्णुता को लेकर देश के राजनैतिक व सामिजिक परिद्रश्य में जो स्थितियां पिछले दो महीने से सुरसा के मुंह की तरह अपना अकार बढ़ा कर कड़ी हुई हैं उन्हें चुनौती देने का काम कर रहे हैं कोल्कता के शकील अंसारी ,इनकी खासियत है कि वह मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने के बावजूद भी ऋग्वेद के श्लोकों का ऐसा उच्चारण करते हैं जो गुरुकुल से पढ़ कर आने वाले संस्कृत के विद्वान् भी नहीं कर सकते / शकील अंसारी गंगा-जमुनी तहजीब की एक ऐसी मिसाल पेश कर रहे है जो पहनते तो टोपी है और दाढ़ी उनकी धार्मिक पहचान है। लेकिन बावजूद इसके जब वह ऋग्वेद के श्लोकों का उचारण करते है तो ऐसा लगता है कि गीता व कुरान के बीच से निकली यह आवाज आखिर उन कानों तक क्योंकि नहीं पहंुचती जो जरा जरा सी बातों को अपने सियासी फायदें के लिए बतंगड़ बनाने का काम करते है। शकील सिर्फ श्लोकों को उचारण ही नहीं बल्कि हवन भी करते है उसे लोग आश्चर्य चकित होकर देखते है तो उसे खुद पर ही बड़ा नाज होता है कि उसके दिल में ऊपर वाले ने जो साम्प्रादियक सौहार्द का जज्बा पनपाया है अगर यह जज्बा समूचे देश के लोगों के दिलों में पनप जाए तो कम से कम देश में दादरी जैसी घटनाओं को सुर्खियों में स्थान मिल ही न सके। वैेसे तो शकील भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नेता है और उनका कहना है कि वह आरएसएस के माध्यम से भाजपा में प्रवेश पाए है। और उनका इस्लाम पर पूरा विश्वास है। और वह हमेशा अल्लाह से दुआ करते है कि देश के लोगों के में ऐसी मानसिकता विकसित करे जिसका इस्तेमाल कम से कम सियासी लोग न कर पाये। स्थानीय भाजपा नेताओं का कहना है कि शकील के अंदर विधमान इन गुणों को जनता के बीच में लाने के लिए वह आगामी विधानसभा चुनाव में शकील को मुस्लिम चेहरे के रूप में पश्चिम बंगाल की जनता के बीच में पेश कर सकती है।