कानपुर। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर एवं द शुगर टेक्नोलाजिस्ट्स एसोसियेशन आफ इंडिया, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों का अनुपालन एवं जल-प्रबंधन विषय पर एक सेमिनार का आयोजन हुआ। शर्करा संस्थान के हाल में आयोजित सेमिनार का उद्घाटन करते हुये लखनऊ से आए प्रबंध निदेशक उ.प्र. सहकारी चीनी मिल्स संघ लि. के डॉ. बी.के. यादव ने जल-संरक्षण को लेकर सभी संभावित साधनों जैसे अशुद्ध पानी के परिशोधन कर दोबारा पीने योग्य बनाने चीनी उत्पादन प्रक्रिया के संशोधन एवं वर्षा जल संचयन आदि के द्वारा चीनी मिलों में उत्पादन के दौरान उपयोग किये जाने वाले स्वच्छ जल के उपयोग को कम करने की दिशा में क्रमिक कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इससे चीनी मिलों को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रेड केटेगरी से बाहर लाया जा सकेगा।
इस मौके पर संस्थान के निदेशक प्रो. नरेन्द्र मोहन ने कहा कि पूरे देश में जल स्तर के निरंतर कम होने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि पानी के नियंत्रित उपयोग के लिए व्यापक अभियान चलाने के लिये खेतों से चीनी मिल तक एक मिशन की तरह कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे और अधिक जल संरक्षण किया जा सके और प्राकृतिक स्रोतों के अंधाधुंध दोहन को कम किया जा सके।
जल पुनर्चक्रण से होगी पानी की बचत
संस्थान के निदेशक ने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित जल-पुनर्चक्रण पद्धति एवं संघनित संरक्षण माडल के उपयोग द्वारा चीनी मिलों में पेराई के दौरान वर्तमान विधि में औसतन इस्तेमाल होने वाले 100-140 ली./टन पेरे गये गन्ने में ताजे पानी की मात्रा को घटाकर 50-60 ली./टन किया जा सकता है। इस प्रकार से एक पेराई सत्र में 5000 टन/दिन गन्ने की पेराई क्षमता की चीनी मिल एक सत्र (औसतन 160 दिन) में लगभग 50000 टन पानी की बचत की जा सकती है और इस प्रकार से देश की चीनी मिलों द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 160 लाख टन पानी की बचत की जा सकती है। इस विधि से कम पानी के उपयोग के कारण कम प्रदूषित जल उत्सर्जित होगा और परिणामतः दूषित जल-शोधन की लागत कम आयेगी।
पर्यावरण मित्र तकनीक को मिले बल
सेमिनार में नई दिल्ली से आए द शुगर टेक्नोलाजिस्ट्स एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष संजय अवस्थी ने खाड़ी क्षेत्रों में स्थित चीनी मिलों का उदाहरण देते हुये पर्यावरण मित्र तकनीक के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्रदूषित जल के शोधन एवं उसके दोबारा उपयोग में लाने के लिए चीनी मिलों द्वारा कम लागत वाली तकनीक विकसित की जानी चाहिये, जिससे चीनी मिलों में चीनी उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कम से कम ताजे पानी का उपयोग हो।
जैव रसायन विशेषज्ञ ने माडल का किया प्रदर्शन
तकनीकी सत्र के दौरान संस्थान द्वारा ‘इलेक्ट्रोकोएगुलेशन विद एडजारप्शन एवं आयन एक्सचेंज प्रोसेस फिजिबल च्वाइस फार रियूजिंग शुगर फैक्ट्री कंडेंसेट एंड इफलुयेंट’ विषय पर विकसित माडल का प्रदर्शन करते हुये डॉ. सीमा परौहा, आचार्य जैव रसायन ने इसकी प्रमुख विशेषताओं और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में बताया। इसके साथ ही दूषित जल को ‘इलेक्ट्रोकोएगुलेशन कपल्ड विथ एडजारप्शन आन फ्लाई ऐश/कार्बन एवं आयन एक्सचेंज प्रक्रिया’ के परीक्षण परिणामों के बारे में विस्तार से बताते हुये कहा कि यूपी की दो चीनी मिलों में इसका परीक्षण किया जा चुका है। जिसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं। परीक्षण के दौरान सीओडी में 80 प्रतिशत की कमी पाई गई है। डॉ. परौहा ने बताया कि इस तकनीक द्वारा परिशोधित जल की गुणवत्ता शुद्ध पानी की तरह ही पाई गई और इसके शुद्धिकरण में लागत मात्र रूपये 35 प्रति क्युबिक मी. आयेगी।
देशभर से प्रतिभागियों ने लिया भाग
सेमीनार में देश के उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडु आदि से आये लगभग 100 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। सेमिनार के तकनीकी सत्र में विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा विविध शीर्षकों, जिनमें चीनी मिलों एवं आसवनियों में एकीकृत जल-प्रबंधन, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार चीनी मिलों में जल-प्रबंधन में इसका अनुपालन, दूषित जल चक्रण एवं कम दूषित जल उत्सर्जन के लिए मितव्ययी तकनीक का उपयोग, एकीकृत चीनी कांप्लेक्सों में दूषित जल रिसाइकिल करने के लिए तकनीकी समाधान, सिंचाई प्रबंधन प्लांट के द्वारा चीनी उद्योग में जल एवं दूषित जल का प्रबंधन, इलेक्ट्रोकोएगुलेशन कपल्ड विद एडजारप्शन विधि द्वारा चीनी मिलों के कंडेंसेट एवं इफलुयेंट का उपचार/शोधन, चीनी मिलों में थोड़ा सुधार करके दूषित जल उत्सर्जन में नियंत्रण आदि विषयों पर 12 अनुसंधान पत्र प्रस्तुत किये गये।