kanpur 29.04.2015 शनिवार को आए भूकंप के बाद नगर में अवैध निर्माण और जर्जर भवनों को लेकर खलबली मची है। डीएम ने ऐसे भवनों को चिह्नित करने का फरमान जारी किया है। वहीं सरकारी महकमों के अफसर खुद जिन बंगलों एवं इमारतों में बैठे हैं वह भी जर्जर स्थिति में हैं। कई भवन तो निष्प्रयोज्य घोषित होने बाद भी उपयोग में लाए जा रहे हैं। आखिर इन जर्जर सरकारी इमारतों पर कार्रवाई कौन करेगा?
नगर में ब्रिटिशकाल व उसके बाद की निर्मित कई इमारतें हैं, जिनमें कई विभाग चल रहे हैं। इन भवनों का ठीक ढंग से रखरखाव न होने से वह जर्जर हो गए हैं। इन सरकारी भवनों के ऊपर घास-फूस के अलावा पीपल व बरगद के पेड़ तक उग आए हैं।
मुरारीलाल चेस्ट हास्पिटल जिसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1969 में हुई वो भी रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गया है। प्लास्टर टूट कर गिर रहा है। भवन में बड़े-बड़े पीपल एवं बरगद के पेड़ उग आए हैं। यहां औसतन 100-150 मरीज भर्ती रहते हैं। यहां की ओपीडी में रोजाना औसतन तीन सौ से अधिक मरीज आते हैं।
प्रादेशिक सेवायोजन कार्यालय ब्रिटिशकाल की यह इमारत जर्जर हो गई है। यहां बेरोजगार छात्र-छात्राओं का पंजीकरण, मोटिवेशनल क्लासेज एवं अफसर बैठते हैं। जर्जर भवन में दरारें पड़ गई हैं। प्लास्टर झड़ने से ईटें निकल रही हैं। छतों से प्लास्टर टूटकर गिर रहा है। यहां कभी भी हादसा हो सकता है।
नगरीय परिवार कल्याण केंद्र ग्वालटोली स्थित स्वास्थ्य विभाग के इस भवन का निर्माण 1935 में हुआ था। यहां पहले मेटरनिटी सेंटर था। विभाग को दान में मिलने पर एएनएम ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया गया। अब नगरीय परिवार कल्याण केंद्र चल रहा है, यहां टीकाकरण एवं महिलाओं को परामर्श दी जाती है। 40-50 मरीज आते हैं। यह भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों ने सर्वे कर ध्वस्तीकरण का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन आज तक कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिल सकी।
बीएन भल्ला हास्पिटल
बाबूपुरवा स्थित नगर निगम से संचालित अस्पताल का उद्घाटन 29 जून 1968 में हुआ था। यह भी जर्जर हो गया है, परिसर की छतों का प्लास्टर टूट कर गिर रहा है। मरम्मत न होने से भवन भी जगह-जगह से टूट कर गिर रहा है।
ये कुछ सरकारी भवन तो बानगी मात्र हैं। नगर में पीडब्ल्यूडी, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, श्रम विभाग, जिला आपूर्ति विभाग, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अस्पताल जर्जर भवनों में चल रहे हैं। इन भवनों में अफसर एवं कर्मचारी रोज भगवान भरोसे काम करते हैं। वहीं प्राथमिक व जूनियर स्कूलों का भी यही हाल है, जहां शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं जान हथेली पर लेकर पढ़ाई करते हैं।ज़्यादातर स्कूल ऐसे हैं जो तेज़ आवाज़ के पटाखों से अपना प्लास्टर छोड़ देते हैं तो अंदाजा लगाया जा डी सकता है की खुदानाखास्ता भूकम्प आने पर कटा हो गा।
