abu obaida -लखनऊ- पंचायती राज चुुनाव को अगर मिशन 2017 का आगाज माना जाए तोे प्रदेश की राजनीति के परिद्रश्य में यह बात साफ तौर पर उभर कर सामने आ गई है कि आगामी विधान सभा चुनाव में गठबंधन की ही सरकार बनना लगभग तय है। ।।। वैसे तो बहुजन समाज पार्टी जिसे समाज वादी पार्टी प्र्रदेश की राजनीति में अपना धुर विरोधी मानती है उसके पक्ष में आए परिणामों ने सपा के सिपाह सालारों में खासी बेचैनी पैदा कर दी है। वही भाजपा नेताओं के माथें पर चिन्ता की लकीरेे खीच दी है। जहां तक कांग्रेस की बात है तो वह तो खुद अपने गढ़ अमेठी में भी एक सीट पाने को भी मोहताज रही प्रदेश के इक्का दुक्का जनपदों में जहां पर प्रत्याशी जीतें भी वह आंसू पोछने के लिए काफी नहीं है। हालांकि अभी जिला पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुखों के निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। तो ऐसे में सभी राजनैतिक दल अपने प्रत्याशियेां की संख्या के अनुपात के अतिरिक्त वोटों को पाने के लिए निर्दलीय प्रत्याशियों के दरवाजें पहंुचकर उन्हें रिझाने में लग गए है।। यह प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि राजनैतिक दलों को नकार कर जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों पर अपना सर्वाधिक भरोसा जताया है। निर्दलीय प्रत्याशी राजनैतिक दलों की इस कमजोरी का भरपूर लाभ उठाने में कही ेसे खुद को पीछे नहीं रखना चाहते है और उसकी पूरी कीमत चुनाव के पहले वसूल लेना चाहते है। हालोंकि समाजवादी पार्टी जो प्रदेश की सत्ता में काबिज है वह जिला पंचायतों में अपने ही लोगों को लाल बत्ती से नवाजने के लिए ऐढ़ी चोटी का जोर लगाने में जुट गई है। और इसके लिए जिला स्तर पर नेताओं को जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। लेकिन स्थानीय राजनीति में उठा पठक के चलते सपा के लिए यह राह बहुत आसान नहीं है। लेकिन अगर पूर्व के चुनाव की तरह उसने सत्ता बल के साथ प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल किया तो शायद वह अपने मकसद में पूरी भी हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो सबसे ज्यादा नुकसान बहुजन समाज पार्टी का होगा। जो चुनाव परिणाम के बाद मिशन 2017 में अपनी सत्ता वापसी का ख्वाब देख रही है । प्रदेश भर से मिले चुनाव परिणाम के नतीजों ने सभी राजनैतिक दलों की सियासी गणित गड़बड़ा दी है जिसे लेेकर वह विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए नई रणनीति को अंजाम देने के लिए जुट गई है। जिला पंचायत अध्यक्ष के उम्मीदवारों के लिए जहां एक ओर भारी मारामारी है वहीं ब्लाक प्रमुखों के चुनाव को भी लोग अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोेड़ कर साम डाम डंड भेद अपने मकसद कोे पूरा करने में लग गए है। जिला पंचायत अध्यक्षों ने निर्वाचित सदस्यों को लुभाने के लिए तिजोरियों के मुंह खोल दिए है बावजदू इसके निर्दलीय पत्याशी किसी के पक्ष में खुलकर आने को तैैयार नहीं है इसके पीछे शायद इनकी मंशा अपनी कीमत और बढ़ा कर मिलने की सम्भावना बताई जा रही है। राजनैतिक विशेषज्ञोेें का मानना है कि निर्दलीय प्रत्याशियों का सर्वाधिक झुकाव चयन प्रक्रिया प्र्रारंभ होेते होते समाजवादी पार्टी के पक्ष में जा सकता है। क्योकि वहां दौलत के साथ साथ सत्ता की हनक भी उनके राजनैतिक भविष्य के लिए वरदान साबित हो सकती है। उनका यह भी दावा है कि बसपा भी खुद इस मामले में पीछे नहीं रखना चाहती र्है और इसी वजह से उसने इस काम की कमान अपने विधानसभा प्रभारियों पर डालते हुुुुए यह सुनिश्चत किया है कि उनके विधानसभा चुनाव में टिकट पाने का पैमाना भी इन चुनाव पर निर्भर रहेगा ।।।।महानगरी क्षेत्रों के ग्रामीण इलाकों में जहां भाजपा के पक्ष में प्रत्याशियों ने कमल का फूल खिलाने का काम किया है वहां पर भी विधानसभा की तैयारी में जुटे प्रत्याशियों एवं क्षेत्रीय विधायकों व सांसदों के कंधों पर प्रदेश नेतृत्व में यह जिम्मेदारी डाली है। जबकि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व अभी कुछ तय कर पाने की स्थिति में नहीं आ पाया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में राष्ट्रीय लोक दल के नेता ने भी अपने नवनिर्वाचित प्रत्याशियों को लामबंद करना शुरू कर दिया है इनका दावा है कि कम से कम तीन जनपदों में जिला पंचायत के अध्यक्ष के पदों पर इनके ही प्रत्याशी काबिज होगे । कौन कितने पानी में यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही तय हो पाएगा लेकिन मिशन 2017 के इस सेमी फाइनल ने सभी राजनैतिक दलों के समीकरणों को धरातल में पहंचाने का काम किया है। और अब उन्हें नए सिरे से मिशन 2017 की तैयारी करने का संदेश भी देने का काम किया है।