कानपुर।संविधान द्वारा न्याय का अधिकार सुनिश्चित होने के बावजूद अदालतों में विलम्ब से भारत की जनता को इस मूलभूत संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। अदालतों में इन्साफ मिलने के जगह तारीख पे तारीख मिल रही है और इसके परिणाम स्वरुप वर्तमान में तीन करोड़ से अधिक मुक़दमे विचाराधीन हैं अगर यही व्यवस्था २०४०तक जारी रही और इसमें सुधार न किया गया तो मुकदमो की संख्या १५ करोड़ तक पहुँच जायेगी। यह जानकारी आम जनता को फोरम फॉर फ़ास्ट जस्टिस द्वारा निकाली गयी यात्रा के दौरान दी गयी।यात्रा के संयोजक प्रवीण चंद पटेल ने बताया कि यात्रा ३० जनवरी की दिल्ली के जंतर मंत्र से शुरू हुई है जो देश के १२ राज्यों में साढ़े आठ हज़ार किलोमीटर का सफर तय करे गी इस बीच विभिन्न शहरों में न्याय में तेज़ी लाने के मक़सद से लोगों को अपने साथ जोड़ा जाये गा ताकि यह आवाज़ सरकार के कानों में तक पहुंचे और सरकार इस अहम मुद्दे पर गौर करके न्याय में तेज़ी लाने के लिए अदालतों और जजों की संख्या में वृद्धि करे। प्रवीण ने बताया कि भारत में प्रति १० लाख की आबादी पर मात्र १०.५ न्यायधीश हैं जबकि आस्ट्रेलिया जैसे देश में १० लाख की जनसंख्या पर ४१ इंग्लैण्ड में ५१ कनाडा में ७५ और अमेरिका में १०७ न्यायधीश हैं। भारत की सर्वोच्च अदालत ने वर्ष २००७ तक १० लाख की आबादी पर ५० जजों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था लेकिन आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी कोई प्रगति नही हुई।
