मेरठ। नगर निगम मेरठ के चर्चित सीवर जेटिंग घोटाले की जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। अपर आयुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय द्वारा की गई जांच में साढ़े दस लाख रुपये का घोटाला सामने आया है। इस रिपोर्ट में नगर निगम को दोषी माना गया है। इसके बाद नगर निगम में हड़कंप मचा हुआ है। माना जा रहा है इसकी आंच निगम के आला अधिकारी के अलावा कई कर्मचारियों पर आ सकती है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मेरठ नगर निगम ने 33 लाख 96 हजार में मशीन खरीदी। जबकि यही मशीन गाजियाबाद नगर निगम ने 23 लाख 80 हजार में खरीदी। यानी दस लाख 16 हजार रुपये का बंदरबाट हुआ है। हालांकि अजय शंकर पांडेय ने जांच रिपोर्ट में दोषी व्यक्तियों के नाम का उल्लेख नहीं किया है। शिकायतकर्ता पूर्व पार्षद अजय गुप्ता और नगर निगम का पक्ष सुनने के बाद उन्होंने नगर निगम को दोषी माना है। उन्होंने कहा है कि मंडलायुक्त के निर्देश के बाद भी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई। केवल एक निविदा डाले जाने के बावजूद खरीद को मंजूरी दी गई। जबकि इसी समय टायर खरीद में दो निविदा प्राप्त होने के बाद नगर निगम ने नियमों का हवाला देते हुए टेंडर प्रक्रिया रोक दी थी। यानी सीवर जेटिंग मशीन में जानबूझकर ऐसा किया गया।
इतना ही नहीं नगर निगम ने टाटा चैसिस के लिए 14 लाख 11 हजार 350 रुपये का भुगतान तो क्वालिटी इन्वायरो इंजीनियर्स गाजियाबाद को किया गया। मगर बाद में इसकी खरीद अशोक ऑटो सेल्स लिमिटेड इटावा से केवल 12 लाख 55 हजार में की गई। वह भी एक साल पुराना मॉडल मंगाया गया। इस तरह टाटा की खरीद में एक लाख 56 हजार 350 रुपये का ज्यादा भुगतान किया गया। जबकि अशोक ऑटो सेल्स को कोई कार्य आदेश निर्गत नहीं किया गया।
दबाव मेें नहीं खोला नाम
जांच मंडलायुक्त के निर्देश के बाद की गई। मगर मेरठ मंडलायुक्त के स्तर से जांच रिपोर्ट शिकायतकर्ता को नहीं दी गई। तत्कालीन मंडलायुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण ने दूसरे नगर निगम में भी अनियमितता का हवाला देते हुए रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। जहां से सूचना के अधिकार के तहत शिकायतकर्ता अजय गुप्ता ने रिपोर्ट मंगाई है। माना जा रहा है पूर्व नगर आयुक्त के नगर विकास मंत्री आजम खान से संबंधों के चलते स्थानीय प्रशासन रिपोर्ट सार्वजनिक करने में आनाकानी करता रहा।
जांच के झोल
अपर आयुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय ने इस घोटाले के लिए जिम्मेदार किसी व्यक्ति का नाम अपनी रिपोर्ट में नहीं लिखा है। उन्होंने लिखा है कि लापरवाही और नियमों का पालन नहीं करने के लिए नगर निगम दोषी है। इससे दोषियों को बचाव में मदद मिलेगी।
जांच के निष्कर्ष :-
1. निविदा के नियमों का पालन नहीं किया गया।
2. शासकीय धन की बचत करने की बजाए नियमों और आपत्तियों की अनदेखी गई।
3. मंडलायुक्त के निर्देशों का पालन नहीं किया गया।
4. समयावधि का बहाना बनाया गया, मगर पत्रावली में बिना कारण ही एक माह की देरी की गई।
5. टाटा चैसिस की आपूर्ति अशोक ऑटो सेल्स इटावा से हुई, मगर भुगतान क्वालिटी इन्वायरो इंजीनियर्स गाजियाबाद को किया गया।
6. वित्तीय हस्तपुस्तिका के अनुसार महत्वपूर्ण खरीदारी के लिए समिति का गठन नहीं किया गया।
जांच रिपोर्ट के बारे में मुझे नहीं पता है। मंडलायुक्त महोदय की तरफ से भी कोई आदेश नहीं मिला है। जो भी आदेश मिलेगा, उसका पालन होगा।
– अब्दुल समद, नगरायुक्त मेरठ।
दोषियों को दंडित करना नगर निगम और शासन का काम है। जांच निष्पक्ष हुई है। मगर जो लोग दोषी हैं, उनका नाम भी बताया जाना चाहिए था।
– अजय गुप्ता, पूर्व पार्षद. Report:- Sanjay Thakur