कानपुर।पक्षिमी सभ्यता महिलाओं के जिस्म की नुमाइश करके भारतीय संस्कृति को नष्ट करती जारही है।महिलाओं की आज़ादी के नाम पर उनकी दिलकश अदाओं और खूबसूरती को उत्पादों के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जारहा है जिस से आने वाली नस्लों पर बुरा असर पड़ रहा है और छोटी बच्चियां समय से पहले अपने आप को बड़ा समझने लगी हैं। टीवी चैनेल और फिल्मे आज सुंदरता के नाम पर नग्न्ता परोस रहे हैं। यह बातें सुन्नी उलमा काउन्सिल के बैनर तले हुए आल इंडिया मुस्लिम महिला बोर्ड के एक जलसे में महिला शहर क़ाज़ी मोहतरमा मारिया फज़ल ने कहीं। सैयदा तबस्सुम की अध्यक्षता में हुए जलसे में महिला शहर क़ाज़ी ने कहा कि आज भाई पिता और बेटियां एक साथ बैठ कर टीवी नहीं देख सकते। हर चैनेल में महिलाओं के जिस्म की नुमाइश किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाती है। यहाँ तक कि न्यूज़ चैनलों में दिखाए जाने वाले विज्ञापन भी अश्लीलता की हदें पार कर चुके हैं जिस पर सरकारों को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। मारिया साहिबा ने कहा की गाँवों में आज भी भारतीय संस्कृति देखने को मिलती है और सभी धर्मों की महिलाऐं मर्दों के सामने घूंघट डाल कर या हिजाब में जाती हैं वहीँ पक्षिमी सभ्यता को उदारवादी बताने वाले आज किसी न किसी रूप में नारी की इज़्ज़त को सरेबाज़ार नीलम करने पर तुले हैं। शहर क़ाज़ी ने कहा कि इस्लाम में महिलाओं को घर की ज़ीनत कहा गया है और वह घर संभालते ही अच्छी लगती हैं।उन्हों ने कहा कि महिला घर में रह कर अपने पति बच्चों और पिता की देखभाल करे तो उसे कैदी कहते हैं जब की घर से बाहर निकलने वाली महिलाएं हवाई जहाज़ों और होटलों में लोगों का दिल बहला कर खाना परोसती हैं और झूठन बटोरती हैं वहीँ दफ्तरों के रिसेप्शन पर उन्हे मर्दों को आकर्षित करने के लिए नौकरी दी जाती है। अब समाज फैसला करे कि चंद सिक्कों के लिए हवाई जहाज़ में अपनी खूबसूरत काया की नुमाइश बेहतर है या इज़त के साथ घर वालों की खिदमत। जलसे में सुभाना बेगम मुन्नवर परवीन दिलशाद बेगम साबिरा बेगम आदि मौजूद थीं।
