राजेश मिश्र .लखनऊ .नवम्बर माह में बिहार में होने वाले विधान सभा चुनाव की गतिविधियाँ तेज़ हो चुकी हैं और सभी राजनैतिक दल लंगोटा बाँध कर चुनावी दंगल में कूद पड़े हैं/इस चुनाव में कई राजनैतिक दलों में सीटों के बटवारे एवं सिद्धांतों को लेकर उभरे मतभेदों ने वहां के चुनावी समीकरण उलटपलट दिए हैं जिस से बिहार की राजनीत में ऐसा भूचाल आ गया है की सभी दल इस सदमे से पूरी तरह ग्रसित हैं/चुनावी दौरों के साथ नेताओं ने भी अपने राजनैतिक स्वरों को बदलते हुए जनता को रिझाने का सिलसिला शुरू कर दिया है /चुनाव परिणाम भले ही किसी के पक्ष व विपक्ष में हों लेकिन बिहार के इस चुनाव से निकलने वाली चिंगारी उत्तर प्रदेश के २०१७ में होने वाले विधानसभा चुनाव में ज्वाला मुखी बन कर यहाँ के भी राजनैतिक समीकरणों को बिगाड़ने का काम कम करे गी/स्थिति स्पष्ट है की कल तक कांग्रेस के साथ गलबहियां करते हुए सपा मुखिया सोनिया की शान में कसीदे पढ़ते हुए भाजपा को सीधे निशाने पर रखते थे लेकिन बिहार में उनका तीसरा मोर्चा कहीं न कहीं इस रिश्ते में खटास पैदा करने का काम करे गा/नितीश कुमार व लालू प्रसाद गठबंधन में कांग्रेस को बराबर की साझीदार है लेकिन कल चम्पारन में हुई राहुल गांधी की रैली में इन दोनों नेताओं का मंच से गायब रहना यह ज़ाहिर करता है की इस महा गठबंधन में भी कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है/चुनाव बिहार में और आक्रोश उत्तरप्रदेश में अभी से दिखने लगा है/जो कांग्रेस कल तक समाजवादी पार्टी को उत्तरप्रदेश हाथों हाथ लेती नजर आती थी अब उसके नेताओं के स्वर सपा सरकार के विरुद्ध बगावती हो उठे हैं/ज़ाहिर है की राजनीती के बदले इन हालात से आगामी यूपी विधान सभा चुनाव सभी दलों को प्रभावित करने का कम करे गा/